Friday, November 19, 2010

कामचोर को सलाम

पुरानी इमारत के भीतर, छत के बिलकुल करीब की  खिड़की पर एक कबूतर फड़फड़या तो उसने एक लंबा बांस उठा लिया। इतने लोगों की भीड़ में वह इकलौता था, जिसकी नजर उस परिंदे पर गई थी। थोड़ी ही  देर में कबूतर उसकी मुट्ठी में था। यह सरकारी इमारत थी और वह सरकारी मुलाजिम। काम के वक्त वह कबूतर पकड़ रहा था। मैंने मन ही मन उसे गाली थी और कामचोर हो रहे सारे सरकारी कर्मचारियों को भी। यह निश्चित ही जंगली कबूतर था। मुझसे रहा  नहीं गया तो पूछ बैठा-क्या तुम इसे खाओगे। वह कुछ न बोला। मैंने पूछा क्या पालोगे-इस बार बड़ी देर तक खामोश रहने के बाद उसने कहा-यह  जंगली है, रोकने की कितनी भी कोशिश करो उड़ जाएगा। इसे पाला नहीं जा सकता। मैंने फिर पूछा-तब तो तुमने इसे खाने के लिए ही पकड़ा है न। उसने कहा-मैं कबूतर नहीं खात। मैं हैरान था-तो क्यों पकड़ा, क्या किसी और के लिए है, क्या कोई बीमार है, क्या उसकी दवा के के लिए इसके खून और मांस का उपयोग करोगे, कई सावल मैंने दागे। उसने कहा-नहीं।
तो फिर क्यों पकड़ा। 
वह जवाब नहीं देना चाहता था शायद। मैंने जोर देकर पूछा तो उसने कहा-यह अभी बच्चा है। भटक गया है शायद।  यह या तो बिल्ली-कुत्ते का शिकार हो जाता या फिर किसी ऐसे आदमी के हाथ पड़ जाता जो इसे खा जाता। इसलिए मैंने पकड़ लिया। उसने कहा-मैं अब इसके पर कतर कर घर पर रखूंगा, जब यह बड़ा हो जाएगा  तो इसे नये परों के साथ उड़ा दूंगा। 
अब मैं सोच रहा था कि ऐसे ही  कामचोर हर सरकारी दफ्तर में क्यों नहीं होते।

5 comments:

  1. aamen! aapke ek aur naye blog ka bhi swagat hai bhai sahab, dar-asal aap jaise logo k aane se hi blogjagat ki sarthakta badhti hui pratit hoti hai....

    shubhkamnayein...

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  2. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  3. बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|

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  4. लेखन के मार्फ़त नव सृजन के लिये बढ़ाई और शुभकामनाएँ!
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    आलेख-"संगठित जनता की एकजुट ताकत
    के आगे झुकना सत्ता की मजबूरी!"
    का अंश.........."या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें।"
    पूरा पढ़ने के लिए :-
    http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html

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